गोकरुणानिधि १८८१ में स्वामी दयानन्द ने गोकरुणानिधि नामक पुस्तक प्रकाशित की जो कि गोरक्षा आन्दोलन को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाने का श्रेय भी लेती है। इस पुस्तक में उन्होंने सभी समुदाय के लोगों को अपने प्रतिनिधि सहित गोकृष्यादि रक्षा समिति की सदस्यता लेने को कहा है जिसका उद्देश्य पशु व कृषि की रक्षा है।
स्वामी दयानंद जी ने गौ रक्षा के लिए कौन सी पुस्तक लिखी थी?
गोकरुणानिधि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित एक लघु पुस्तिका है।
गुरु विरजानंद ने स्वामी दयानंद को क्या उपदेश दिया था?
1 Answer. गुरु विरजानन्द ने स्वामी दयानन्द को यह उपदेश दिया था, “वत्स दयानन्द जंगलों में जाकर एकान्त चिन्तन में संन्यास की पूर्णता नहीं है….. कुसंस्कारों और अन्धविश्वासों को खण्डन करके समाज • का उद्धार करो।”
स्वामी दयानंद के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
स्वामी दयानंद जी के विचार में शिक्षा मनुष्य को ज्ञान, संस्कृति, धार्मिकता, आत्मनियंत्रण, नैतिक मूल्यों और धारणीय गुणों को प्राप्त करने में मदद करती है और मनुष्य में विद्यमान अज्ञानता, कुटिलता तथा बुरी आदतों को समाप्त करती है। तत्कालीन समाज न केवल जातिवाद बल्कि समूचे नारी वर्ग के प्रति भी दुराग्रह का शिकार था।
स्वामी दयानंद ने समाज सुधार के लिए क्या किया?
स्वामी दयानंद ने दलितोद्धार, स्त्रियों की शिक्षा, बाल विवाह निषेध, सती प्रथा और विधवा विवाह को लेकर समाज में क्रांति पैदा की। लोगों को वैदिक धर्म से जोड़ने के लिए स्वामी दयानंद ने 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने नारा दिया, 'वेदों की ओर लौटो।
स्वामी दयानंद ने किसका विरोध किया था?
स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने समस्त जीवन में समाज में फैली कुरीतियों, पाखंडों, आडंबरों का घोर खंडन और विरोध किया।
स्वामी दयानंद का असल नाम क्या था?
दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम ‘मूलशंकर’ था। उन्होंने वेदों के प्रचार के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की।
स्वामी दयानंद ने मूर्ति पूजा का विरोध क्यों किया?
स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने समस्त जीवन में समाज में फैली कुरीतियों, पाखंडों, आडंबरों का घोर खंडन और विरोध किया।
दयानंद ने किसका विरोध किया?
१८७३ में आर्योद्देश्यरत्नमाला नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें स्वामी जी ने एक सौ शब्दों की परिभाषा वर्णित की है। इनमें से कई शब्द आम बोलचाल में आते हैं पर उनके अर्थ रूढ हो गए हैं, उदाहरण के लिए ईश्वर धर्म-कर्म आदि। इनको परिभाषित करके इनकी व्याख्या इस पुस्तक में है। इस लघु पुस्तिका में ८ पृष्ठ हैं।
स्वामी दयानंद ने क्या लिखा?
मूर्ति पूजा का विरोध
दरअसल इसके पीछे एक घटना थी, उनके आस्था भाव को उस वक्त ठेस पहुंची जब उन्होंने भगवान शिव पर चढ़ा प्रसाद एक चूहे को खाते हुए देख लिया। उसके बाद से ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया।
स्वामी दयानंद मूर्ति पूजा के विरोधी क्यों थे?
स्वामी जी ने कहा, यदि मुझे किसी मठ या संपत्ति का मालिक बनने की लालसा होती, तो मैं माता-पिता, बंधु-बांधव और घर आदि क्यों छोड़ता। महंत ने पूछा, तो फिर क्या पाने के लिए घर छोड़ा है? स्वामी जी ने कहा, सत्य, विद्या, योग, मुक्ति, आत्मा आदि का रहस्य जानने के लिए मैंने घर छोड़ा है।
स्वामी दयानंद ने घर क्यों छोड़ा?
जोधपुर की एक वेश्या की नाराजगी आर्य समाज के प्रणेता और महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती पर बहुत भारी पड़ी थी और उन्हें आखिरकार अपनी जान तक गंवानी पड़ी। स्वामी दयानंद सरस्वती से नाराज नन्ही नाम की वेश्या ने धोखे से उन्हें दूध में कांच का चूरा पिला दिया।
नन्ही जान कौन थी?
दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम ‘मूलशंकर‘ था।
मूलशंकर किसका बचपन का नाम था?
ऋग्वैदिक आर्य किसकी पूजा करते थे? ऋग्वेद के समय के आर्य जन प्रकृति के देवों कि पूजा करते थे. उस समय मूरति पूजा नहि थी. न राम, कृष्ण, विष्णु, परशुराम आदि जैसे मानव अवतारी महापुरुष पूजे जाते थे बल्कि इंद्र, यम, सुर्य, वरुण, वायु, अग्नि आदि जैसी प्राकृतिक शक्तियों कि पूजा उपासना होती थी.
आर्य समाज के लोग किसकी पूजा करते हैं?
यह आन्दोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारम्भ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अन्धविश्वासों को अस्वीकार करते थे।
आर्य समाज किसकी पूजा करता है?
ऋग्वैदिक आर्य किसकी पूजा करते थे? ऋग्वेद के समय के आर्य जन प्रकृति के देवों कि पूजा करते थे. उस समय मूरति पूजा नहि थी. न राम, कृष्ण, विष्णु, परशुराम आदि जैसे मानव अवतारी महापुरुष पूजे जाते थे बल्कि इंद्र, यम, सुर्य, वरुण, वायु, अग्नि आदि जैसी प्राकृतिक शक्तियों कि पूजा उपासना होती थी.
क्या वेदों में मूर्ति पूजा वर्जित है?
स्वामी जी ने कहा, यदि मुझे किसी मठ या संपत्ति का मालिक बनने की लालसा होती, तो मैं माता-पिता, बंधु-बांधव और घर आदि क्यों छोड़ता। महंत ने पूछा, तो फिर क्या पाने के लिए घर छोड़ा है? स्वामी जी ने कहा, सत्य, विद्या, योग, मुक्ति, आत्मा आदि का रहस्य जानने के लिए मैंने घर छोड़ा है।
क्या मूर्ति पूजा करना गलत है?
दरअसल इसके पीछे एक घटना थी, उनके आस्था भाव को उस वक्त ठेस पहुंची जब उन्होंने भगवान शिव पर चढ़ा प्रसाद एक चूहे को खाते हुए देख लिया। उसके बाद से ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया।
शंकर किसका नाम था?
शिव या महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि कई नामों से भी जाना जाता है भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं।
शिव जी को कौन सा रंग पसंद है?
धर्म शास्त्रों के मुताबिक हरा रंग भोलेनाथ का प्रिय रंग होता है। ऐसे में सिर्फ सावन सोमवार में ही नहीं बल्कि भक्त शिवरात्रि के दौरान भी हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इसके अलावा शिव जी के दौरान आप हरे रंग के अलावा संतरी, पीले, सफेद और लाल रंग के कपड़े भी धारण कर सकते हैं।
शिव जी को भोग में क्या पसंद है?
भगवान शिव को भांग और पंचामृत का नैवेद्य पसंद होता है। इसके अलावा उन्हें रेवड़ी, चिरौंजी और मिश्री भी चढ़ाई जाती है। सावन के महीने में भोले बाबा का व्रत रखकर उन्हें गुड़, चना और चिरौंजी का भोग लगाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
घर के पूजा घर में माचिस क्यों नहीं रखनी चाहिए?
माचिस रखने से नहीं मिलता है पूजा का फल
ऐसा माना जाता है कि घर के मंदिर में कोई भी ज्वलनशील सामग्री जैसे माचिस या लाइटर नहीं रखना चाहिए। ये अपनी और नेगेटिव ऊर्जा को आकर्षित करती हैं। माचिस को आप घर में किचन या किसी अन्य स्थान पर रख सकते हैं, लेकिन माचिस कभी भी बेडरूम में भी नहीं रखनी चाहिए।
घर के मंदिर में क्या नहीं होना चाहिए?
पूजा कक्ष डिजाइन करते समय यह देखना जरूरी है कि मंदिर में देवताओं का मुख सही दिशा में है या नहीं। इसके अलावा, देवताओं की मूर्तियों का चेहरा माला और फूलों से ढकना नहीं चाहिए। हमेशा भगवान की ठोस मूर्ति रखें और मंदिर में खोखली मूर्ति रखने से बचें। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर में मूर्तियों को फर्श पर न रखें।
कौन सा धर्म मूर्ति पूजा नहीं करता?
Q. बौद्ध धर्म का कौन सा अंग मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता है? Notes: हीनयान बौध्द धर्म की शिक्षाओं पर विश्वास करता है। हीनयान मूर्तिपूजा पर विश्वास नहीं करता है और न ही यह विश्वास करता है कि बुद्ध भगवान थे।
पुरानी मूर्ति को क्या करना चाहिए?
नई मूर्ति की स्थापना के बाद पुरानी मूर्तियों का भूलकर भी अपमान न करें. इन्हें किसी कागज या साफ कपड़े में लपेटकर सुरक्षित रख दें. फिर जब भी आपको मौका मिले, आप अपने घर के पास किसी नदी या नहर में उन्हें विसर्जित कर दें. अगर नदी या नहर का पानी गंदा हो तो पुरानी मूर्तियों को उसमें प्रवाहित न करें.
दयानंद सरस्वती जी का धर्म क्या था?
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दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती |
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क्या आर्य समाज हिंदू है?
आर्य समाज, (संस्कृत: “सोसाइटी ऑफ नोबल्स”) आधुनिक हिंदू धर्म का जोरदार सुधार आंदोलन , 1875 में दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य प्रकट सत्य के रूप में वेदों, सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथों को फिर से स्थापित करना था।
मूल शंकर कौन है?
मूल शंकर त्रिपाठी आर्य समाज के संस्थापक और नेता दयानंद सरस्वती का मूल नाम था । आर्य समाज एक हिंदू सुधार आंदोलन था जिसने वेदों के मूल्यों और प्रथाओं को बढ़ावा दिया। दयानंद सरस्वती बचपन से ही संन्यासी और विद्वान थे।
दयानंद ने मूर्ति पूजा का विरोध क्यों किया?
दरअसल इसके पीछे एक घटना थी, उनके आस्था भाव को उस वक्त ठेस पहुंची जब उन्होंने भगवान शिव पर चढ़ा प्रसाद एक चूहे को खाते हुए देख लिया। उसके बाद से ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया।
आर्य कहाँ से भारत आते हैं?
स्वामी दयानंद सरस्वती ने बताया कि आर्य तिब्बत से आए थे। वहीं पंडित बाल गंगाधर तिलक उत्तरी ध्रुव यानी कि आर्कटिक प्रदेश से आए थे। वहीं पश्चिमी विद्वान मैक्स मूलर ने बताया कि आर्य मध्य एशिया से आए थे।
भारत में आर्य कब आते हैं?
यह 7,000 से 3,000 ईसा पूर्व के बीच हुआ होगा.
आर्य क्या खाते थे?
अंबेडकर ने लिखा है, “ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है.”
क्या आर्य और हिंदू एक ही हैं?
आर्य समाज हिन्दू ही है, पहले अखण्ड भारत को आर्यावर्त कहा जाता था। आर्य का अर्थ होता है धर्म को मानने वाला, इसलिए जो धर्म को मानने वाले होते थे मतलब जो अच्छाई और सच्चाई के राह पर चलते थे उन्हें आर्य कहा जाता था।